रामगढ़ः झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रविवार को अपने पैतृक गांव नेमरा में बाहा पर्व मनाया. नेमरा पहुंचने पर हेमंत सोरेन और परिवार के सदस्यों का गांव वालों तथा परिजनों ने पारंपरिक ढंग से स्वागत किया. मुख्यमंत्री ने भी ढोल भी बजाया.
हेमंत सोरेन ने सरना पूजा स्थल ‘जाहेरथान’ में पारंपरिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर राज्यवासियों की सुख-समृद्धि, उन्नति और कल्याण की कामना की. इससे पहले उन्होंने पारंपरिक वस्त्र धारण किए और ढोल-नगाड़ों की थाप के बीच पैदल करीब एक किलोमीटर चलकर सरना स्थल पहुंचे. वहां उन्होंने संथाली परंपरा के अनुसार जाहेरथान में पूजा की.
पारंपरिक वेशभूषा में हेमंत सोरेन ने जंगलों- पहाड़ों को निहारा. वे अपने हाथों में साल के फूल लिए हुए थे. सोशल मीडिया पर हेमंत सोरेन ने बाहा पर्व मनाने की कई तस्वीरें साझा की है. उन्होंने लिखा, झारखंडियत हमारी शान है. आदिवासियत हमारी पहचान है. जल, जंगल, जमीन हमारा स्वाभिमान है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पैतृक आवास में पत्नी कल्पना सोरेन के साथ पूजा-अर्चना के बाद घर के किचन में परिवार के सदस्यों के साथ भोजन भी बनाया. बाद में परिवार के सभी सदस्यों के साथ इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया और स्वाद का आनंद लिया.
इस खास मौके पर मुख्यमंत्री के साथ उनकी मां रूपी सोरेन, पत्नी एवं गांडेय की विधायक कल्पना सोरेन, भाभी पूर्व विधायक सीता सोरेन समेत परिवार के अन्य सदस्य भी मौजूद थे. रामगढ़ की विधायक ममता देवी भी मुख्यमंत्री के स्वागत में नेमरा गांव पहुंची थीं.
गोला प्रखंड के नेमरा गांव में हेमंत सोरेन के आने से पहले ही बाहा पर्व की व्यापक तैयारी की गयी थी. बाहा संताल जनजाति का एक लोकप्रिय पर्व है. ‘बाहा’ का अर्थ है फूल. बाहा पर्व में आदिवासी समाज प्रकृति की उपासना करते हैं और उसका आभार व्यक्त करते हैं. इस पर्व के अवसर पर बच्चे, पुरुष और स्त्रियाँ सभी परम्परागत वस्त्र धारण करते हैं.
होली से एक दिन पूर्व ग्राम देवता की पूजा होती है. सुबह में जाहेर थान में पांरपरिक पूजा होती है तथा मरांग बुरु से पूरे वर्ष अच्छी खेती और बीमारियों से रक्षा का आशीर्वाद मांगते हैं. ग्राम के लोग बैठक कर सारे कार्यक्रम का निर्धारण करते हैं. उसके बाद जाहेरथान में अपने देवताओं (पूर्वजों) की पूजा-अर्चना की जाती है जिसमें खासकर साल और महुआ के फूलों को चढ़ाया जाता है. इसे फागुन माह के 5वें दिन से शुरू होकर पूर्णिमा तक मनाए जाने की परंपरा है.
बाहा पर्व आदिवासियों के लिए प्राचीन परंपरा का भी प्रतीक है, जो प्रकृति की प्रेम और अभिवादन का प्रदर्शन करता है. यह आदिवासियों की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्रकृति को देवता के रूप में मानता है. बाहा पर्व संबलता, सामाजिक एकता और संगठन की भावना को प्रकट करता है.
हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने भी सरायकेला में अपने पैतृक गांव जिलिंगगोड़ा में बाहा पर्व मनाया था. इसके अलावा कोल्हान में अलग-अलग जगहों पर बाहा पर्व पर आयोजित कार्यक्रमों तथा समारोह में भी वे भाग लेते रहे हैं.