रांचीः अगर आप झारखंड से हैं और कोई यह पूछे कि सत्ता, सिस्टम में क्या कुछ चल रहा है, तो आपका जवाब होगा- चहुंओर खटाखट- खटाखट का शोर है. यानी- मईंया सम्मान योजना. गांवों- कस्बों में चले जाएं, तो सरकार की इस योजना की चर्चा हर घर, परिवार और खासकर आधी आबादी- महिलाओं की जुबान पर होगी. बैंकों में लंबी- लंबी कतारें. दरअसल चुनावी वादे के अनुरूप झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार ने 18 से 50 साल की लगभग 56 लाख महिलाओं के खाते में दिसंबर महीने से ढाई हजार रुपए देना शुरू कर दिया है। वैसे जिस झारखंड राज्य में खटाखट का शोर है, जोर है, वहां एक जरूरी सवाल पर चर्चा क्यों गुम है. सत्तारूढ़ दलों और विपक्ष में कोई प्रतिकिया तक नहीं सुनी गई. क्या यह जरूरी सवाल किसी को हैरान परेशान नहीं कर रहा. अगर परेशान कर रहा है तो ये हालात कब तक बदलेंगे.
दरअसल हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा यू डायस प्लस की 2022-23 और 2023-24 की रिपोर्ट जारी की गई है. यह रिपोर्ट कहती है कि राज्य में 8353 स्कूल सिर्फ एक टीचर के भरोसे चल रहे. कितने स्कूल- 8 हजार 353. इन स्कूलों में 4 लाख 10 हजार 99 बच्चे नामांकित हैं.
रिपोर्ट कहती है कि झारखंड में 35 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक हैं. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह रेशियो 25 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक का है. अलबत्ता आप जान कर हैरान हो जाएंगे कि झारखंड पूपील टीचर रेसियोज- पीटीआर यानी छात्र -शिक्षक अनुपात के मामले में झारखंड देश भर में सबसे अंतिम पायदान पर है. झारखंड के साथ ही अलग राज्य बने छत्तीसगढ़ में पीटीआर 21 है. बिहार में पीटीआर 32 है. झारखंड में एक स्कूल में औसत 161 विद्यार्थी नामांकित हैं.इस राज्य में 35 लाख बच्चे मिडील और सेकेंडरी लेवल में पढ़ते हैं.
हाल ही में झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में बीजेपी विधायक राज सिन्हा के एक सवाल के जवाब में शिक्षा मंत्री ने बताया है कि झारखंड में 7930 सरकारी स्कूल एक-एक टीचर के भरोसे चल रहे. सरकार जल्दी शिक्षकों की नियिक्ति करेगी.
यूडीआईएसई प्लस (UDISE+) का पूरा नाम Unified District Information for Education plus है। इसका मुख्य काम मौजूदा स्कूलों के डेटा को एकत्र करना अर्थात छात्रों, स्कूलों, शिक्षकों और फंडिंग आदि की जानकारी को एक जगह पर एकत्र करना है। इस प्रकार यह शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रभावी नीतियां और कार्यक्रम बनाने में मदद करके भारत की शिक्षा प्रणाली के पर्यवेक्षण और मूल्यांकन में एक बड़ी भूमिका निभाता है।
2015-16 के बाद कोई नई वेकैंसी नहीं आई
हालांकि संसाधनों के मामले में झारखंड के स्कूलों की स्थिति लगातार सुधरती जा रही है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि टीचर नहीं तो पढ़ाई की गुणवत्ता कैसी. सोचिये और समझिये कैसे गढ़ा जा रहा नौनिहालों, बच्चों का भविष्य. पूछा जा सकता है कि स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी क्यों और कब तक यह तस्वीर बदलेगी. दरअसल यह उस राज्य की दास्तान है, जहां स्कूलों में बड़े पैमाने पर शिक्षकों के पद खाली हैं और 2015-2016 के बाद कोई नई वेकैंसी नहीं आई है. शिक्षकों की नियुक्तियों को लेकर अंतिम विज्ञापन वर्ष 2015-16 में जारी किया गया था और इसी आधार पर 2022-23 तक शिक्षकों की नियुक्ति हुई है.
इस बीच हेमंत सोरेन सरकार के नये शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने कहा है कि झारखंड मे जल्द ही 52 हजार शिक्षकों की नियुक्तियां होंगी. राज्य में पांच सौ सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस खुलेंगे. सात जनवरी को भी शिक्षा मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा है कि शिक्षकों की नियुक्ति पर सरकार की नजर बनी हुई है. मंत्री ने यह भी एलान किया है कि झारखंड में अगले पांच साल में 500 सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस खोले जाएंगे। अभी राज्य में 80 ऐसे स्कूल हैं, जिन्हें अगले दो साल में बढ़ाकर 160 किया जाएगा।
वैसे सरकारें ये दावे करती रही है कि प्रारंभिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुनिश्चितता के लगातार कदम उठाये जा रहे हैं. 2024-2025 का बजट पेश करते हुए राज्य के वित्त मंत्री ने सदन में यही तो कहा था. सरकार शिक्षा विभाग के बजट को भी प्राथमिकता देती रही है. 2024-2025 में झारखंड में सरकार ने ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज के बाद सबसे ज्यादा 11.42 प्रतिशत राशि का प्रावधान शिक्षा पर किया है. इनमें प्राथमिक और माध्यामिक शिक्षा पर 12 हजार 314 करोड़ खर्च का प्रावधान है.
लेकिन शिक्षाविद या इस फील्ड के एक्सपर्ट्स मानते हैं कि शिक्षा का विकास अथवा सर्वव्यापीकरण सिर्फ बजट बढ़ाने से नहीं मुकम्मल हो जाते. सिस्टम और सरकार हर वह काम करती है, जिनमें बिल्डिंग खड़े हों, टेंडर हों, अलग- अलग किस्म के कार्यक्रम हों, लेकिन शिक्षकों के खाली पद प्रतिबद्धता के साथ भरे जाएं यह नहीं करेगी. नियुक्तियों की नियमावली को लेकर सवाल खड़े होते रहेंगे. वेकैंसी आई तो परीक्षा और रिजल्ट सवालों के घेरे में आएंगे.
स्कूलों को उत्करमित करने का सिलसिला जारी है. वर्ष 23-24 में ही 140 मिडील स्कूल को ही स्कूल में उत्करमित कर दिया गया है. लेकिन शिक्षकों की कमी एक बड़ा सवाल है. द एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर 2022 ) कहती है कि राज्य में 6 से 14 साल के 83 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं. जबकि पांचवीं से आठवीं क्लास के लगभग 47 प्रतिशत बच्चे ट्यूशन लेते हैं. पांच से आठ क्लास के 48 प्रतिशत बच्चे अंग्रजी में वाक्य पढ़ नहीं पाते.