बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 सितंबर) को भारत के चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह आधार कार्ड को “12वें दस्तावेज़” के रूप में माने, जिसे बिहार की संशोधित मतदाता सूची में शामिल होने के लिए पहचान के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है.
इसका अर्थ है कि आधार कार्ड को मतदाता सूची में शामिल होने के लिए स्वतंत्र दस्तावेज़ के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जैसे कि चुनाव आयोग द्वारा मूल रूप से स्वीकार्य अन्य ग्यारह दस्तावेज़ों में से किसी एक को भी.
सुप्रीम कोर्ट न्यायालय ने चुनाव आयोग के इस वचन को दर्ज किया कि आधार कार्ड को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाएगा.
लाइव लॉ के अनुसार जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने यह आदेश तब पारित किया जब राजद और अन्य याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि चुनाव आयोग के अधिकारी मतदाता सूची में शामिल करने के लिए आधार कार्ड को एक स्वतंत्र दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे हैं और चुनाव आयोग द्वारा अपनी SIR अधिसूचना में निर्दिष्ट ग्यारह दस्तावेज़ों में से किसी एक को प्रस्तुत करने पर ज़ोर दे रहे हैं.
न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है. न्यायालय ने भारत के चुनाव आयोग को आधार की स्वीकृति के संबंध में अपने अधिकारियों को निर्देश जारी करने का निर्देश दिया.
न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग के अधिकारी मतदाताओं द्वारा प्रस्तुत आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता की पुष्टि करने के हकदार होंगे. न्यायालय ने कहा कि आधार अधिनियम के अनुसार, आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है.
हालांकि, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4) को ध्यान में रखते हुए आधार कार्ड किसी भी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से एक दस्तावेज़ है.