खूंटीः खूंटी और आसपास के इलाकों में सरहुल को लेकर तैयारियां शुरू है. पारंपरिक मांदर की थाप और सरहुल गीतों के साथ सरहुल का स्वागत जगह- जगह पर किया जा रहा है. पहाड़ों- जंगलों में टेसू खिल रहे हैं. साल के पेड़ों में फूल लदे हैं. शाखें लचक रही हैं. और सरना समुदाय के लोग कानों में सरई फूल खोंसे झूम रहे हैं.
इसी सिलसिले में रनिया प्रखंड एसएस+2 उच्च विद्यालय, रनिया में विद्यालय परिवार की ओर से पारंपरिक मांदर की थाप और सरहुल गीतों के साथ हर्षोल्लास से सरहुल महोत्सव मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत विद्यालय की छात्राओं द्वारा वंदना गीत “जोहार जोहार हामर पावन धरती के” से हुई.
इस अवसर पर शिक्षिका संजू केरकेट्टा ने सरहुल पर्व के प्राकृतिक महत्व, आदिवासी परंपराओं, प्राकृतिक आस्था और विश्वास पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के अनुकूल जीवन जीने की प्रेरणा हमें प्रकृति से ही लेनी चाहिए.
विद्यालय की प्रभारी प्रधानाध्यापिका रीता सरोजनी कोनगाड़ी ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को पेड़ बचाने, लगाने और अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने की आवश्यकता है।
इस उत्सव में विद्यालय के छात्र-छात्राओं और शिक्षकों ने पारंपरिक वेशभूषा में “चैत महीना आलक”, “ओको रेको बहा तना”, “हरियर सरई फूल और महुआ कर खोंच” जैसे आदिवासी जदूर गीतों पर शानदार सामूहिक नृत्य प्रस्तुत किए.
उधर बुंडू स्थित पांच परगना किसान (पीपीके) कॉलेज में शनिवार को सरहुल पूर्व संध्या समारोह का भव्य आयोजन किया गया. इस अवसर पर कॉलेज की प्राचार्या डॉ विनीता कुमारी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं, जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर कुरमाली विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो भूतनाथ प्रामाणिक ने समारोह की शोभा बढ़ाई.
प्राचार्या डॉ विनीता कुमारी ने अपने संबोधन में सरहुल पर्व प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा देता है. सरहुल, प्रकृति के प्रति आदिवासी समाज की गहरी आस्था और सम्मान का प्रतीक है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता मुंडारी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ लखींद्र मुंडा ने की, जबकि मंच संचालन का दायित्व राजीव कुमार ने निभाया. समारोह में कॉलेज के विभिन्न विभागों के शिक्षकगण और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे.
सरहुल पूर्व संध्या समारोह में छात्रों ने पारंपरिक गीत- नृत्य के साथ माहौल को उल्लासमय बना दिया.