प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पिछले 10 वर्षों में वर्तमान और पूर्व सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों, राजनीतिक नेताओं और राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) सहित कुल 193 मामले दर्ज किए हैं. इनमें से केवल दो मामलों में आरोप साबित (दोष सिद्ध) हो पाए हैं.
आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 से 2024 के बीच ईडी मामलों की संख्या में उछाल नजर आता है, जिसमें सबसे अधिक मामले साल 2022-23 में दर्ज किए गए हैं.
वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने केरल से राज्यसभा सदस्य एए. रहीम के सवालों के जवाब में यह आंकड़ें साझा किए.
इस आंकड़े ने ईडी की कार्यप्रणाली और इसकी प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, साथ ही राजनीतिक हलकों में इसे लेकर बहस छिड़ गई है।
आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल 2022 से मार्च 2023 के बीच सबसे अधिक 32 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद अप्रैल 2020 से मार्च 2021 और अप्रैल 2023 से मार्च 2024 के बीच 27-27 मामले दर्ज हुए. 2019-2020 और 2021-2022 के दौरान 26-26 मामले दर्ज किए गए.
राज्यसभा के सदस्य रहीम ने पिछले 10 वर्षों में सांसदों, विधायकों और स्थानीय प्रशासन के सदस्यों के खिलाफ दर्ज ईडी मामलों की संख्या, दोषसिद्धि और बरी किए गए मामलों की संख्या तथा लंबित मामलों की साल-दर-साल जानकारी मांगी थी.
उन्होंने यह भी पूछा था कि क्या हाल के सालों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, अगर हां, तो इस प्रवृत्ति के पीछे का कारण क्या है और क्या सरकार ने ईडी जांच की पारदर्शिता और दक्षता में सुधार के लिए कोई सुधार किए हैं?
चौधरी ने जवाब में कहा कि सांसदों, विधायकों और स्थानीय प्रशासकों के खिलाफ ईडी मामलों और उनकी पार्टियों से संबंधित राज्यवार डेटा उपलब्ध नहीं है.
मंत्री ने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में ईडी द्वारा दर्ज मामलों में वृद्धि हुई है या नहीं, इस पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
प्रवर्तन निदेशालय, एक प्रमुख कानून प्रवर्तन एजेंसी, मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 (पीएमएलए), विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) और भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (एफईओए) को लागू करता है.
मंत्रालय ने कहा,“ईडी जांच के लिए मामलों को विश्वसनीय साक्ष्य/सामग्री के आधार पर लेता है और राजनीतिक संबद्धता, धर्म या अन्य आधारों पर भेदभाव नहीं करता. इसके अलावा, ईडी की कार्रवाई हमेशा न्यायिक समीक्षा के दायरे में होती है.
एजेंसी विभिन्न न्यायिक मंचों जैसे कि निर्णायक प्राधिकरण, अपीलेट ट्रिब्यूनल, स्पेशल कोर्ट्स, हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट्स के प्रति जवाबदेह है, जहां पीएमएलए, फेमा और एफईओए को लागू करने की प्रक्रिया के तहत की गई कार्रवाई की समीक्षा की जाती है.”