सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को राजनीतिक विवादों को निपटाने के लिए न्यायालय की अवमानना के अधिकार क्षेत्र और जनहित याचिकाओं के इस्तेमाल पर नाराजगी जताई.
न्यायालय ने टिप्पणी की, “झारखंड मामले में, हम नहीं चाहते कि अवमानना के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल राजनीतिक बदला लेने के लिए किया जाए. अगर आपको किसी विशेष नियुक्ति से कोई समस्या है, तो केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण जाएँ. लेकिन अपने राजनीतिक बदला मतदाताओं के सामने लें.“
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि राजनीतिक लड़ाइयों का निपटारा मतदाताओं के सामने होना चाहिए.
न्यायालय राज्यों में पुलिस महानिदेशकों की नियुक्ति से संबंधित प्रकाश सिंह मामले की सुनवाई कर रहा था, तभी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति के विरुद्ध एक आवेदन उसके समक्ष आया.
याचिका की जाँच के बाद, न्यायालय ने पाया कि अवमानना याचिका अनुराग गुप्ता और पूर्व पुलिस महानिदेशक अजय कुमार के बीच विवाद के कारण दायर की गई थी. गुप्ता की नियुक्ति के लिए अजय कुमार को पद से हटा दिया गया था.
बार एंड बेंच डॉट कॉम के मुताबिक न्यायालय ने कहा, “पीआईएल, जनहित याचिका के अधिकार क्षेत्र को कमज़ोर करने का एक तरीका है ताकि जनहितैषी व्यक्ति इस न्यायालय का रुख़ कर सकें. इस अधिकार क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी हितों के बीच प्रतिशोध के लिए अनुमति नहीं दी जा सकती.”
एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने प्रकाश सिंह के इस सुझाव का समर्थन किया कि पुलिस प्रमुख की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के बजाय मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए.
सिंह ने न्यायालय को बताया कि राज्य डीजीपी नियुक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को दरकिनार करने के लिए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशकों (एडीजीपी) की नियुक्ति कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि ये सभी मामले इसलिए सामने आ रहे हैं क्योंकि न्यायालय की निगरानी बंद हो गई है.
रामचंद्रन ने सुझाव दिया कि शीर्ष न्यायालय के फैसले का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए उच्च न्यायालय की विशेष पीठें हर तीन महीने में बैठ सकती हैं.
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि राज्यपालों की शक्तियों पर संविधान पीठ के मामले के बाद इस मामले की विस्तार से सुनवाई की जाएगी.