कोयला कंपनियों पर राज्य सरकार के एक लाख 36 हजार करोड़ रुपये बकाए की दावेदारी पर हेमंत सोरेन सरकार और केंद्र की सरकार के साथ बीजेपी का टसल गहराता जा रहा है। एक महीने के दौरान झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सार्वजनिक कार्यक्रम में दो बार कह चुके हैं कि अगर ये पैसे नहीं मिले, तो कोयला खदानों को रोक देंगे.
दूसरी तरफ झारखंड में बीजेपी के सभी प्रमुख नेता लगातार इन बातों पर जोर देते रहे हैं कि इस मुद्दे पर हेमंत सोरेन और सत्तारूढ़ दल सिर्फ राजनीति कर रहे हैं. बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का कहना है कि अगर पैसे बकाये हैं, तो सरकार ब्रेकअप दे. बताये कि किस- किस मद में कितने पैसे बाकी हैं. बाबूलाल मरांडी का आरोप है कि सरकार के पास लिखित में कुछ भी नहीं है.
दूसरी तरफ पिछले चार फरवरी को धनबाद में जेएमएम के 53वें स्थापना दिवस पर इस मुद्दे पर हेमंत सोरेन ने कोयला खदानों को रोक देने की हुंकार भरी थी। इसके बाद बाबूलाल मरांडी का एक बयान सामने आया था, जिसमें उन्होंने कहा था, “सामान्य व्यक्ति भी किसी से बकाया मांगता है तो देनदार व्यक्ति इससे उसका डिटेल मांगता है. हिसाब चाहता है. ऐसे ही कुछ बोल देने से कुछ नहीं मिलता.” केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी भी इन्हीं बातों पर जोर दे रही है.
23 फरवरी को रांची दौरे पर आए केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कोयले की रॉयल्टी पर राज्य सरकार की दावेदारी को दो टूक खारिज किया था. रांची में बीजेपी की आर्थिक प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित केंद्रीय बजट व्याख्यान के बाद वे मीडिया से मुखातिब थे. इसी मामले में एक सवाल पर उन्होंने कहा था, “राज्य सरकार इस मुद्दे पर बिल्कुल झूठ और भ्रामक बात कर रही है. संसद में वित्त मंत्री ने सब कुछ साफ कर दिया है. “
इधर 24 फरवरी से शुरू झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में भी यह मुद्दा रह-रह कर उछलता रहा है। सरयू राय ने इस मामले में तथ्यपरक और तार्किक ढंग से सदन में सवाल- जवाब कर चुके हैं. इससे पहले 28 नवंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद हेमंत सोरेन सरकार की कैबिनेट की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया था कि कोयला कंपनियों पर राज्य सरकार के एक लाख 36 हजार करोड़ रुपये बकाए की वसूली के लिए केंद्र सरकार/केंद्रीय उपक्रमों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी.
लोकसभा में मंत्री ने कहा, कोई बकाया नहीं
पिछले साल 16 दिसंबर को लोकसभा में पूर्णिया से सांसद ने इसी मामले में एक सवाल पूछा था। उन्होंने अपने सवाल में कहा था कि क्या कोयले से राजस्व के रूप में अर्जित कर में झारखंड राज्य सरकार का हिस्सा लगभग 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपये वर्षों से सरकार के पास लंबित पड़ा है और उसे झारखंड को हस्तांतरित नहीं किया जा रहा है. क्या सरकार राज्यों को धन आवंटन में भेदभाव कर रही है . यदि हां, तो क्या सरकार निर्धारित समय सीमा के भीतर राज्य सरकारों को धनराशि जारी करने का प्रस्ताव रखती है?
तब केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री निरंजन चौधरी ने सांसद के सवाल के जवाब में बताया था कि नहीं कोयले से प्राप्त होने वाले कर में झारखंड राज्य सरकार का कोई हिस्सा बकाया नहीं है. यानी लगभग 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपये वर्षों से सरकार के पास लंबित नहीं है.
मंत्री ने सदन में जानकारी दी थी कि केंद्र सरकार राज्यों को विभिन्न मदों जैसे कर हस्तांतरण, केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए अनुदान सहायता, वित्त आयोग हस्तांतरण, पूंजीगत व्यय/निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना के तहत धन मुहैया कराती है. इसके अलावा, झारखंड राज्य में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं में भी राशि जारी की जाती है.
चार साल से मुखर हैं हेमंत सोरेन
इधर हेमंत सोरेन चार वर्षों से इस मुद्दे पर मुखर हैं. उनका कहना है कि झारखंड जैसे देश के पिछड़े राज्य में सामाजिक सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसके लिए अपना आर्थिक स्रोत बढ़ाने की ज़रूरत है. इससे पहले पिछले साल दो अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झारखंड दौरे से ठीक पहले हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री के नाम एक खुला पत्र जारी किया था. इसके जरिए सोरेन ने कोयला कंपनियों पर राज्य सरकार का एक लाख 36 हजार करोड़ रुपये बकाए के दावे के साथ कहा था कि झारखंड का यह हक कब मिलेगा? उन्होंने एक पोस्ट में लिखा था, “ये हक समस्त झारखंडियों का है. यह हमारी जमीन और मेहनत का पैसा है। इसे मांगने पर बिना किसी कारण मुझे जेल में डाला गया.”
हेमंत सोरेन का पक्ष है कि बकाया राशि नहीं मिलना राज्य के विकास में बाधक है. विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने इस मामले को पुरजोर उछाला. उनका कहना है कि यदि कोयला कंपनियों द्वारा राज्य के वैध बकाया का समय पर भुगतान कर दिया जाता है, तो झारखंड के लोग सामाजिक क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं.
कोयला मंत्री के समक्ष दावेदारी
गौरतलब है कि पिछले दस जनवरी को कोयला मंत्री जी किशन रांची दौरे पर आए थे। कोयला मंत्री ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की थी. इसके साथ ही एक उच्च स्तरीय बैठक भी हुई थी. इस बैठक में कोयला मंत्रालय, कोल इंडिया और राज्य सरकार के आला अधिकारी भी मौजदूद थे. इस मुलाकात और बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने झारखंड का बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपये के भुगतान की मांग रखी. इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने बंद पड़ी खदानों की जमीन राज्य सरकार को लौटने की बात भी रखी थी.