हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 के लिए प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाएगा.
भारतीय ज्ञानपीठ ने शनिवार को इसकी घोषणा की। शुक्ल की साहित्यिक उपलब्धियों और उनकी अनूठी लेखन शैली को सराहा गया है। यह सम्मान उन्हें हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए दिया जा रहा है.
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान प्राप्त हो रहा है। वह ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले लेखक भी बन गए हैं.
ज्ञानपीठ प्रवर परिषद की बैठक में शनिवार को इसकी घोषणा की गई। बैठक की अध्यक्षता प्रतिष्ठित लेखिका एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रतिभा राय ने की.
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म जनवरी 1937 में हुआ था. वह हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक, कवि और उपन्यासकार हैं, जो अपनी सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और अनूठी लेखन शैली के लिए जाने जाते हैं।
वर्ष 2024 के लिए प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को प्रदान किया जाएगा। यह सम्मान उन्हें हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए दिया जा रहा है।
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान प्राप्त हो रहा है। वह ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले लेखक भी बन गए हैं.
ज्ञानपीठ प्रवर परिषद की बैठक में शनिवार को इसकी घोषणा की गई। बैठक की अध्यक्षता प्रतिष्ठित लेखिका एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रतिभा राय ने की.
कवि, उपन्यासकार और कहानीकार के रूप में विख्यात शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था. उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में एक अलग पहचान रखती हैं.
विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत कविताओं से की. उनकी पहली कविता संग्रह ‘लगभग जय हिंद’ 1971 में प्रकाशित हुई. इसके बाद ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’ (1981) जैसे संग्रह ने उन्हें कविता प्रेमियों के बीच लोकप्रिय बनाया. उनकी कविताएँ साधारण शब्दों में गहरे दार्शनिक विचारों को व्यक्त करती हैं. उनके उपन्यासों ने भी हिंदी साहित्य में हलचल मचा दी.
उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ ऐसी रचनाएं हैं, जिन्हें दुनिया भर में सराहा गया. कई भाषाओं में इनके अनुवाद हुए. उनके कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’, ‘आदमी की औरत’ और ‘महाविद्यालय’ भी बहुचर्चित रहे हैं.
पिछले 50 सालों से भी अधिक समय से लिख रहे विनोद कुमार शुक्ल को कविता और उपन्यास लेखन के लिए उन्हें भारत में तो कई सम्मान मिले ही हैं, दो साल पहले उन्हें पेन अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लिए नाबोकॉव अवार्ड से भी सम्मानित किया था. एशिया के वे पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें इस सम्मान से नवाज़ा गया है. पिछले ही साल साहित्य अकादमी ने उन्हें महत्तर साहित्य अकादमी की सदस्यता से सम्मानित किया था.