खूंटी : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर झारखंड के वरिष्ठ नेता और पद्मभूषण पूर्व उपलोकसभा अध्यक्ष कड़िया मुंडा ने अपने संदेश में संघ की सौ वर्षों की यात्रा को राष्ट्रभक्ति और समर्पण की मिसाल बताया है.
कड़िया मुंडा ने कहा है कि संघ का 100 वर्षों का यह सफर केवल समय नहीं, यह राष्ट्र पुनरुत्थान की अमरगाथा है. यह उस दीपशिखा का प्रकाश है, जो केवल स्वयंसेवकों को नहीं, सम्पूर्ण समाज को दिशा देता है। संघ एक जीवनशैली है, जहां विचार जीवित रहते हैं और समर्पण सर्वोपरि होता है.
91 वर्षीय कड़िया मुंडा ने कहा कि “जब संघ की स्थापना हुई, जिसके मात्र 9 वर्ष बाद मेरा जन्म हुआ था. जीवन की यात्रा में युवा अवस्था में जनसंघ और फिर आपातकाल की जेल यात्रा ने मेरे भीतर राष्ट्रप्रेम को और प्रबल किया. जेल में ही मेरी प्रार्थना की शुरुआत हुई, और आज जो कुछ भी मैं देख रहा हूँ, वह संकल्प से सिद्धि की यात्रा है.”
उन्होंने कहा कि संघ केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, एक चेतना है, जो राष्ट्र को परम वैभव तक ले जाने के लिए सतत कार्यरत है. संघ का स्वयंसेवक जहां होता है, वह राष्ट्र को ही परिवार मानकर जीता है. चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, राष्ट्र प्रथम का दीप उसके भीतर सदैव जलता रहता है.
उन्होंने संघ के सौ वर्षों को एक तपस्या बताया है. उन्होंने कहा, “संघ पर कई बार प्रतिबंध लगे, उस पर अनेक आरोप लगे, षड्यंत्र रचे गए, परन्तु यह रुका नहीं. स्वयंसेवकों के त्याग और बलिदान की तपिश ने इस राष्ट्रप्रेम की धारा को कभी सूखने नहीं दिया.”
मुंडा ने अपने संदेश में कहा, “संघ के तीन प्रमुख स्तंभ सेवा, संगठन और संस्कार ने राष्ट्र निर्माण को नई दिशा दी है. जब भी देश में बाढ़, भूकंप या सामाजिक संकट आया, सबसे पहले संघ का स्वयंसेवक वहां सेवा के लिए उपस्थित मिला, बिना किसी प्रचार या प्रशंसा की अपेक्षा के.”
कड़िया मुंडा ने यह भी कहा कि आज भी जब संघ के किसी विचारक को सुनते हैं, तो हृदय में गर्व की लहर और आंखों में आंसू आ जाते हैं. यह वे आंसू होते हैं, जिनमें राष्ट्र के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण छलकता है.