रांचीः झारखंड में पेसा कानून लागू करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. इस मांग को लेकर आदिवासी समाज के प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, सरना धर्मावलंबी के लोगों ने आदिवासी रूढ़ि सुरक्षा मंच के बैनर तले गुरुवार को राजभवन मार्च किया.
जिला स्कूल प्रांगण से यह मार्च निकाला गया था. राजभवन पहुंचकर वहां सभा की गई. मंच के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल के नाम ज्ञापन भी सौंपा.
राज्यपाल के नाम सौंपे गये ज्ञापन में कहा गया कि पेसा कानून 1996 में अनुसूचित क्षेत्रों के स्वशासन, संस्कृति, पहचान और संसाधनों की रक्षा को लेकर पारित किया गया था. लेकिन, झारखंड में इसे प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है. जबकि, पूर्ववर्ती सरकार द्वारा नियमावली का मसौदा तैयार किया गया था. पेसा लागू नहीं होने से आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकार कमजोर हो रहे हैं.
समाज के लोगों ने वर्तमान सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य में कहने को तो अबुआ सरकार है, लेकिन यहां अबुआ के ही हक और अधिकार को कमजोर करने की साजिश की जा रही है.
मंच के संयोजक रवि मुंडा ने कहा कि यह केवल पेसा कानून लागू करने की मांग नहीं है, बल्कि यह झारखंड के आदिवासी समाज की अस्मिता और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का संघर्ष है.
भाजपा की पूर्व विधायक गंगोत्री कुजूर ने कहा कि पेसा कानून आदिवासी समाज की आत्मा है, राज्य सरकार इसे जल्द लागू करे. आरती कुजूर ने कहा कि संविधान की पांचवीं अनुसूची के प्रावधान और पेसा कानून के खिलाफ हेमंत सरकार को आदिवासी समाज मुंहतोड़ जवाब देगा.
पेसा हमारी संस्कृति को संरक्षित करता है : जगलाल पाहन
जगलाल पाहन ने कहा कि हम आदिवासी प्रकृति पूजक हैं. रूढ़ीवादी परंपरा में हमारी आत्मा बसती है. पेसा कानून हमारी रूढ़ि परंपरा और संस्कृति को संरक्षित करता है. अशोक बड़ाईक ने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार पिछले छह वर्षों से पेसा के नाम टाल-मटोल कर रही है. जबकि, पेसा ड्राफ्ट की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है.
राजभवन मार्च में अर्जुन मुंडा, आरती कुजूर, रोशनी खलखो, पिंकी खोंया, नकुल तिर्की, भोगेन सोरेन, बिरसा पाहन, बबलू मुंडा, सन्नी तिर्की, मुन्नी मुंडा, रितेश उरांव, सुजाता कच्छप, रूप लक्ष्मी मुंडा, शांति टोप्पो समेत काफी संख्या में लोग उपस्थित थे.