रांची: चाईबासा के सारंडा जंगल में माओवादियों द्वारा लगाए गए संदिग्ध आईईडी विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हुए छह वर्षीय जंगली हाथी ‘गदरू’ की गहन उपचार प्रयासों के बावजूद दुखद रूप से मौत हो गई. हाथी को दस दिन पहले घायल अवस्था में जंगल में घूमते हुए देखा गया था.
ऐसा माना जाता है कि गदरू को 24 जून को चोटें आईं थीं. शुक्रवार को उसका पता लगा फिर उसका प्राथमिक उपचार किया गया था. शनिवार को वन्यजीव संस्था वनतरा की विशेषज्ञ टीम ने हाथी का रेस्क्यू किया. उसे जंगल से निकालकर जराइकेला लाया था जहां उसकी हालत नाजुक बनी रही.
सारंडा प्रक्षेत्र के वन अधिकारी (डीएफओ) अविरूप सिन्हा ने कहा, “कई घंटों के उपचार के बाद भी अत्यधिक रक्त की कमी और संक्रमण के कारण आखिरकार बेहोशी आ गई. उसके पिछले अंग में गंभीर चोट लगी थी, जो गंभीर रूप से संक्रमित हो गया और उसके पूरे शरीर में फैल गया.”
उन्होंने कहा कि रविवार को होने वाले पोस्टमार्टम के बाद आगे की जानकारी उपलब्ध होगी. पोस्टमार्टम के बाद उसे जंगल में ही दफना दिया गया.
इससे वन विभाग और गुजरात के वन्यजीव बचाव एवं पुनर्वास केंद्र वंतारा के सदस्यों की संयुक्त चिकित्सा टीम ने शनिवार देर शाम बेहतर इलाज के लिए ट्रैकुलाइज कर देर रात उसे जराइकेला लाया गया, लेकिन भारी आंतरिक रक्तस्राव और चोटों के कारण रात भर में ही उसकी मौत हो गई.
हाथी को खोजने और उसका इलाज करने में मदद के लिए झारखंड और ओडिशा के विभिन्न वन प्रभागों से विशेषज्ञ टीमों को बुलाया गया था.
बचाव अभियान की निगरानी जमशेदपुर क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक (आरसीसीएफ) स्मिता पंकज और सारंडा डीएफओ अभिरूप सिन्हा लगातार करते रहे. साथ ही वंतारा से डॉ. तेनजिंग भी मौके पर मौजूद थे.
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह घटना संभवतः 24 से 26 जून के बीच समठा वन क्षेत्र के तिरिलपोशी इलाके में हुई होगी, जहां नक्सलियों ने सुरक्षाबलों को निशाना बनाने के लिए आईईडी लगाया था.
हाथी को आखिरी बार 27 जून को दीघा के पास देखा गया था और आखिरकार 3 जुलाई को ड्रोन से उसका पता लगाया गया.
वन अधिकारियों ने पुष्टि की है कि जानवर गंभीर रूप से घायल हो गया था, हालांकि सटीक कारण की अभी भी जांच की जा रही है. वन्यजीव विशेषज्ञों ने पिछले अंग पर लगी चोट की प्रकृति को देखते हुए आईईडी विस्फोट को कारण मानने से इनकार नहीं किया है.