रांचीः नीरू शांति भगत अपने समर्थकों के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हो गई हैं. शनिवार को जेएमएम के केंद्रीय महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई. इससे पहले नीरू शांति भगत ने 14 जनवरी को आजसू पार्टी से इस्तीफा दिया था.
नीरू शांति भगत के इस्तीफा के बाद से ही अटकलों का दौर शुरू हो गया था कि वे सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हो सकती हैं. दरअसल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से कई मौके पर जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, विधायक कल्पना सोरेन समेत जेएमएम के अन्य नेताओं से उनकी मुलाकात होती रही थीं. शनिवार को उनके जेएमएम में शामिल होने के साथ ही इन तमाम अटकलों पर विराम लगा है.
नीरू शांति भगत के जेएमएम में शामिल होने पर पार्टी के केंद्रीय महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने कहा है, “एक मजबूत झारखंड आंदोलनकारी, पूर्व विधायक दिवंगत कमल किशोर भगत जी की धर्म पत्नी नीरू शांति भगत का दल में स्वागत है. नीरू शांति भगत ने भी सार्वजनिक जीवन काफी उतार- चढ़ाव देखा है. अब वे झारखंड में सबसे बड़े झारखंड मुक्ति मोर्चा परिवार की सदस्य हैं. हम सभी को साथ मिलकर राज्य को आगे ले जाना है.”
नीरू शांति भगत झारखंड आंदोलनकारी और आजसू पार्टी के कद्दावर नेता दिवंगत कमलकिशोर भगत की पत्नी हैं. वे आजसू पार्टी में लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र की प्रभारी थीं. और 2024 के विधानसभा चुनाव में वे एनडीए की साझा उम्मीदवार के तौर पर लोहरदगा से चुनाव लड़ीं, लेकिन कांग्रेस के रामेश्वर उरांव से हार गईं. इससे पहले भी आजसू पार्टी ने उन्हें दो बार चुनाव लड़ाया था.
नीरू शांति भगत ने कहा है कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी, पार्टी के बड़े दारोमदार और सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन जी के सपने को साकार करना है.

आजसू की गतिविधियों से असहज थीं
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उनकी उम्मीदवारी को लेकर पार्टी के अंदर ही कई किस्म की अड़चनें आती रहीं, लेकिन नीरू शांति के कड़े रुख को देखते हुए आखिरी वक्त पार्टी ने उनके नाम पर ही मुहर लगाई. विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद नीरू शांति भगत पार्टी की गतिविधियों, कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों के रवैये और उनके कार्य क्षेत्र में दखल को लेकर असहज महसूस कर रही थीं. इसके बाद उन्होंने 14 जनवरी को इस्तीफा दे दिया.
आजसू के केंद्रीय अध्यक्ष को भेजे इस्तीफे में उन्होंने कहा था, “एक छोटा सा सलाह देना चाहूंगी कि पार्टी के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं को व्यवहार-विचार में भद्रता लाने के अलावा झारखंड आंदोलन के बारे में जानकारी देने के लिए प्रशिक्षण जरूर दिलाएं.’
आंदोलनकारी कमल किशोर भगत
कमलकिशोर भगत ने 2009 और 2014 में लोहरदगा विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. 2015 में एक मामले में कोर्ट से सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता समाप्त हो गई थी. अलग राज्य गठन के बाद कमलकिशोर भगत आदिवासियों के लिए रिजर्व किसी सीट से जीतने वाले आजसू में पहले नेता थे. उन्होंने ताउम्र आजसू को जिया और कार्यकर्ताओ, समर्थकों के बीच उनकी खासी लोकप्रियता थी. कमल किशोर भगत के निधन के बाद उनकी पत्नी ने लोहरदगा को अपना कर्म क्षेत्र बनाया.